Saturday, April 10, 2010

पुराने ख़त..और तुम्हारी याद.

पिछली रात ,पलटते हुए एक पुरानी किताब ,

एक ख़त निकल आया, पुराने किसी अज़ीज़ का...

शब्द दर शब्द बयां करता मेरा वजूद....

वो पुराना ख़त निकल आया....

स्याही सुखी थी... एकदम पर इंसानी गंध कायम थी

ख़त के हासिये में मैं था और ख़त में मेरा वजूद।

जाने किस गली से अँधेरे में ये चिराग निकल आया।

लापता से इस शहर में लाख ढूँढा पर ,

कही कोई आपना मुक्कमल ठिकाना नज़र नहीं आया...

ठुकराया था जिन राहों को कभी...

लाख दी आवाजें पर ...वो राह मुड़कर नहीं आया।

छु भी ना पाया जिसको कभी लफ्जों से ..

आज वही हर्फों से सीने में उतर आया.

1 comment:

  1. एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

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