Saturday, April 17, 2010

रूह में पनाह है तेरा .


आज हवा थोड़ी उदास सी बह रही है,
मौसम भी कितना बदरंग और गरम है.
दूर आसमां में बादल भी नहीं जो....
ये जिस्म कोई ठंडक महसूस करे .
हूक उठी दूर कही किसी दिल में,
जैसे क्रोंच पक्छी के जोड़े में से ,
एक हो गया हो शिकारी की क्रूरता का शिकार,
प्रेम व् प्रणय की पीड़ा से कराहता
निस्संग रह गया अकेला प्राणी ,
क्या कहेगा व्यथा अपनी या की देगा श्राप ,
और दूर  बैठा ऋषि वियोग देखकर ,
मानो  फिर उठा लेगा
कमल की पंखुड़ी और लिख देगा
अपने नाखून से अपने अन्दर के विरह को,
 और अवतरित हो जाएगी सृष्टीकी,
  प्रथम रचना पहला  काव्य.
और फिर दूर हो जाएगी इन हवाओं की उदासी....
और मेरे आगोश में होगी....
तुम्हारे सीने की ठंडक ....
अहिस्ता आहिस्ता रूह में पनाह लेती....

Wednesday, April 14, 2010

तुम्हारी ही छाँव में....

अरसे बाद मुस्कुराया तुम्हारी छांव में,
जिन्दगी के बेहद करीब आया ,
कुछ पल साथ रहा जो  तुम्हारे तो
अतीत से मेरा बचपन लौट आया,
वजह मिली मेरे वजूद को तलाशने की  ,
जब कंधे पर तुम्हारा हाथ  नज़र  आया. 
एक मौन जो हावी था ,
परत दर परत इस आवाज़ पर,
एक स्मित बन अधरों पर उतर आया,
तुम्हारी ही छांव में.

तुम्हे शायद  पता भी नहीं पर 
तुम्हारे स्नेह के बितान तले,
एक शख्स यहाँ हैरान नज़र आया, 
एक फूल खिलने को है तुम्हारी छांव  में,
 चहक कर मिलने को है जिन्दगी से  .....
...... तुम्हारी ही छाँव में.

मेरी खबर

Monday, April 12, 2010

तुम्हारा साथ ...

डर लगता है एहसासों की उस नमी से...
उम्मीदों के रंगीन पर अधूरे से आसमा ...
और बिखरे ख्वाबों की रेतीली जमीन से।
क्या महसूस किया तुमने.... की
पल दो पल के साथ में कैसे चाँद निकल आया
और अब स्याह अमावस की रात घिर आई ।
पर इस रात में रजनीगंधा की महक है ,
दूर आ थे गए हम सपनों की उस जमीं से ,
ख्यालों की दुनिया और स्पर्श की उस नमी से ,
और आज ......
आज फिर डर सा लगा जब ,
तुम्हारे हांथों में जब नमी देखी ,
आँखों में उम्मीदों की नयी सी जमीं देखी .