एक खोज जारी है यहां, मन के अंदर और बाहर भी परिनिर्वाण की तालाश में, जैसे किसी बुद्ध की तरह। क्या पता किसी वैश्या के हाथों खीर की कटोरी में मिल जाए वजूद एक दिन यूं मुददतों से भटकते-2 उस तथागत या कि बुद्ध की तरह।
Saturday, October 16, 2010
Sunday, October 10, 2010
इस रात की कोई सुबह नहीं.
इस रात की कोई सुबह नहीं....... यारों।
आज की शाम बहुत याद आयी तेरी याद।,
पिछली शाम , ढलती किरणों संग तेरी तिरती मुस्कान।
पहले जान पहचान, फिर इंतजार।
थोड़ी सी दोस्ती और ढेर सारा प्यार ।आज की शाम बहुत याद आयी तेरी याद।,
पिछली शाम , ढलती किरणों संग तेरी तिरती मुस्कान।
अब किस गली तुझको ढूँढू मेरी जान,
तेरी दोस्ती ही तो है अब इस रूह की पहचान
ये शाम कुछ अलग है,
हमारी पिछली शाम से अलग॥
बिलकुल अलग..... एक पल में जिन्दगी को बदलते हुए देख रहा हु...
कल तक पल भर को जिसका ख्याल आता था,
अब वो पल भर को भी जाता दूर दिल से नहीं॥
मैं क्या कहू, क्या अब तो इन आँखों में har शय तस्वीर है तेरी॥
इस रात की कोई सुबह नहीं.......
तेरे दूर चले जाने के बाद........ इस दहकती रात और इस निशा... अंत के साथ।
जल रहा हूँ मैं अपनी हीlagai आग में ,
तेरी दोस्ती का दरियां दूर है और मैं ,
प्यासा मैं प्यासा खड़ा हूँ सागर के पास.
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