पर मन उतना ही तनहा और उदास.. मेरी य इ उदासी कहाँ ले जाएगी मुझे... नहीं जनता... पिछले चंद दिनों से अपनी जिंदगी में मुस्त मशगूल सा था... न कोई गम न कोई फिक्र... सोचना ही छोड़ दिया था किसी और बारे में..
मेरा ये अल्हरपन.. ये फक्कड़ पण .. एक दिन मुझे यु ही सताएगा.. इसका मुझे एहसास था...
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जाने कौन सी दुनिया में रहते हो.. क्या चाहते हो.. एक पहेली थे तब भी.. एक पहेली हो अब भी..
पर ये पहेलिपन भी अच्छा लगता है तुम्हारा.. हर बारत मिलकर लगता है जैसे किसी शक्श से पहली बार मिल रहा हूँ...
मै यहाँ घूम रहा हूँ सेंट्रल पार्क.. पालिका के ऊपर से होता हुआ .. जंतर मंतर.. ymca की बिल्डिंग दिखती है तो दिल्ली का अतीत और उस अतीत के कहीं गहरे पार.. मेरे दोस्तों की बातें.. यादें..
सब खुद ही मेरे दोस्त बने.. जाने इस पहेली को सुलझाने की कवायद में शायद .... आज उस शादी के बहाने सभी मुझे मिस कर रहें हियो सायद.. और मै भी कहीं ज्यादा...
उफ़ ये सैलरी कम्बक्त थोड़ी पहले मिल जाती तो चला भी जाता शायद...
घूम रहा हूँ हवाओं के सुखद झोके के संग..
पर दोस्तों तुम्हारी यादें ज्यादा सुखद है...
मैंने जिन्दगी से मौका छीना तो फिर से तुम्हारे साथ हो सकूँगा..
ये ठंढी हवाएं दिल में कहीं गहरे चुभ रही है..
और मन धुआं धुंआ सा है....