Monday, January 3, 2011

तो ले चलोगे न उस पार.....

उसने धीरे से कहा...
  तुम्हारा मुस्कुराना अच्छा लगता है. कितनी रहस्यमयी मुस्कान है तुम्हारी...
 हसना तो जैसे तुमने सिखा ही नहीं..
  कितना हसीं होगा वो पल जब तुम ठाहके लगा कर उन्मुक्त हंसी हसोगे...
   जाने भी दो...
 क्या रखा है इस हंसी में..
 तुम्हारी खिलखिलाहटों में तो मै ही हँसता रहता हूँ.
रात के सन्नाटे में तुमने ही तो मुस्कुराने की वजह दी है...
 सोचता हूँ की प्यार कभी इतना निश्छल भी हो सकता है...
जगता तब भी था जगता अब भी हूँ.. पर कितना फर्क होता है न नदी के दो किनारों की तरह ..
 तुम्हारे साथ जिन्दगी का एक दूसरा रू०प देखा..
 वीरानों में भी बसंत की खूसबू महसूस की....
  अब तो मै तुम्हारे देह की खुसबू भी पहचान लू..
   क्या वाकई इंसानी गंध को पहचानना इतना आसन है...
 कहते है धरी पर इंसान का पहला वास्ता इंसानी गंध से होता है..
 बच्चा पैदा होते ही शक्ल नहीं माँ की दैहिक गंध पहचानता है... फिर दैहिक उस्मा...
क्या उमीदों की उस दुनिया तक पंहुचा जा सकता है...
 मुझे तुम्हारे साथ उम्मीदों के उस जहाँ तक जाना है...
  तो ले चलोगे न उस पार.....

Tuesday, November 30, 2010

कुहरों की सफ़ेद झीनी चादरों में लिपटकर यादों का मौसम आया है .....

कुहरों की सफ़ेद झीनी चादरों में लिपटकर यादों का मौसम आया है .....
जाने कौन सी गली से इश्क की सदायें लिए ये मौसम आया है.....

hmmmm.. just read

Sunday, October 10, 2010

neeeeeeeeeeeeeeeeeews

इस रात की कोई सुबह नहीं.

इस रात की कोई सुबह नहीं....... यारों।
 इस दोस्ती की राह आसन नहीं होती॥
पहले जान पहचान, फिर इंतजार।
 थोड़ी सी दोस्ती और ढेर सारा प्यार ।
 आज की शाम बहुत याद आयी तेरी याद।,
 पिछली शाम , ढलती किरणों संग तेरी तिरती मुस्कान।
 अब किस गली तुझको ढूँढू मेरी जान,
तेरी दोस्ती ही तो है अब इस रूह की पहचान
ये शाम कुछ अलग है,
हमारी पिछली शाम से अलग॥
बिलकुल अलग..... एक पल में जिन्दगी को बदलते हुए देख रहा हु...
 कल तक पल भर को जिसका ख्याल आता था,
अब वो पल भर को भी जाता दूर दिल से नहीं॥
 मैं क्या कहू, क्या अब तो इन आँखों में har शय तस्वीर है तेरी॥
 इस रात की कोई सुबह नहीं.......
 तेरे दूर चले जाने के बाद........ इस दहकती रात और इस निशा... अंत के साथ।
 जल रहा हूँ मैं अपनी हीlagai आग में ,
 तेरी दोस्ती का दरियां दूर है और मैं ,
प्यासा मैं प्यासा खड़ा हूँ सागर के पास.

Monday, June 7, 2010

खाली खाली सा मन

मौसम आज बेहद ही सुहाना है.. जैसे दिल्ली की आबोहवा पर किसी सोनपरी ने जादुई छड़ी घुमा दी हो..
पर मन उतना ही तनहा और उदास.. मेरी य इ उदासी कहाँ ले जाएगी मुझे... नहीं जनता... पिछले  चंद  दिनों से अपनी जिंदगी में मुस्त मशगूल सा था... न कोई गम न कोई फिक्र... सोचना ही छोड़ दिया था किसी और बारे में..
 मेरा ये अल्हरपन.. ये फक्कड़ पण .. एक दिन मुझे यु ही सताएगा.. इसका मुझे एहसास था...
अभी कल की ही तो बात है.. अमृत (मेरा दोस्त भाई जैसा ) को छोड़ने स्टेशन तक गया तो मन भर आया .. सोचने लगा.. यार दोस्तों के कितने फ़ोन आ रहे थे.. चला जाता तो अच्छा ही होता.. जाने जिन्दगी  कब ये हंसने मुस्कराने के चंद लम्हे भी चीन ले... सबने कहा अ  जाओ  न चन्दन..  क्या होता है.. ३ -४ दिनों में .. एकठे बैठ कर दो पल हंस बोल ही लेंगे.. इस शादी के बहाने..  एक अरसा गुज़र  गया.. तुम्हारा चेहरा देखे.. और तुम्हारी बातें.. वैसे भी तुम बोलते कहाँ हो..
जाने कौन सी दुनिया में रहते हो.. क्या चाहते हो.. एक पहेली थे तब भी.. एक पहेली हो अब भी..
पर ये पहेलिपन भी अच्छा लगता है तुम्हारा.. हर बारत मिलकर लगता है जैसे किसी शक्श से पहली बार मिल रहा हूँ...  
 मै यहाँ घूम  रहा हूँ सेंट्रल पार्क.. पालिका के ऊपर से होता हुआ .. जंतर मंतर.. ymca  की बिल्डिंग दिखती है तो दिल्ली का अतीत और उस अतीत के कहीं गहरे पार.. मेरे दोस्तों की बातें.. यादें..
सब खुद ही मेरे दोस्त बने.. जाने इस पहेली को सुलझाने की कवायद में शायद .... आज उस शादी के बहाने सभी मुझे मिस कर रहें हियो सायद.. और मै भी कहीं ज्यादा...
उफ़ ये सैलरी  कम्बक्त  थोड़ी पहले मिल जाती तो चला भी जाता शायद...
 घूम रहा हूँ हवाओं के सुखद झोके के संग..
पर दोस्तों तुम्हारी यादें ज्यादा सुखद है...
मैंने जिन्दगी से मौका छीना तो फिर से तुम्हारे साथ हो सकूँगा..
ये ठंढी हवाएं दिल में कहीं गहरे चुभ  रही है.. 
और  मन धुआं धुंआ सा है....