एक खोज जारी है यहां,
मन के अंदर और बाहर भी
परिनिर्वाण की तालाश में,
जैसे किसी बुद्ध की तरह।
क्या पता किसी वैश्या के
हाथों खीर की कटोरी में
मिल जाए वजूद एक दिन
यूं मुददतों से भटकते-2
उस तथागत या कि बुद्ध की तरह।
Tuesday, November 30, 2010
कुहरों की सफ़ेद झीनी चादरों में लिपटकर यादों का मौसम आया है .....
कुहरों की सफ़ेद झीनी चादरों में लिपटकर यादों का मौसम आया है .....
जाने कौन सी गली से इश्क की सदायें लिए ये मौसम आया है.....
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