Tuesday, April 27, 2010

नींद भरी रातों के जागते सपने.

पिछली रात नींद बहुत अच्छी आयीकई जगती उनींदी रातों के बाद.... एक सुकून सा हलक में उतर आया जाने कहाँ से... फिर ये सुकून पलकों से होकर बच्चों की सी गहरी नींद और फिर सपनो में उतर आयासपने भी आयेजिन्होंने डराया नहीं , परेशान नहीं किया , कोई तनाव या चिंता नहींलगा जिन्दगी ऐसी हो कभी कभी ही सही तो कितना अच्छा हो..दो पल इंसान जी ले जिन्दगी को जिन्दगी की तरह... एक आस तो है जिन्दगी सेचाहे कितनी भी धुप हो रात के दामन में दो ठंढी बूँदें ओस की तो होगी ही.... जीन्दगी गंदे फूल की तरह ही तो है ....

थोडा रंग ,थोड़ी खुशबू....और फेंक कर मारो तो चोट भी लगती है....

मुझे लगता है जिन्दगी किसी कल्प वृक्ष की तरह ही तो है...जैसी कामना करोगे वैसा ही प्रतिफल मिलेगा...

हैरत होती है मुझे जब कोई इंसान मिल जाता है... हाँ ... आज के इस अवसरवादिता के युग में कोई इंसान अच्छा इंसान मिल जाये तो हैरत की ही तो बात है ... और ज्यादा हैरत तब होती है जब उनको खुश देखता हूँवो इंसान हँसते गाते ... मुस्कुराते और जीतें है... मुझे हर कदम ... हर अक्श अछे लोग मिले .... मैंने अपना थोडा जीवन उन्ही की सोहबत में जिया... और उम्मीद है की आगे भी जीवन यु ही मुस्कुराएगा .... और इसकी छांव में मैं भी.... आज मेरे एक अजीज ने मुझे लिखा ...... कितने चित्र ,कितनी तिथियाँ बदल गयी ,पर कुछ भी बदला बदला सा लगता नहींसबकुछ वैसा का वैसा दीखता है, मन की अन्तरंग दुनिया में शायद दिन महीने नहीं होते , काल वर्ष बदलता हैजो जैसा था वो वैसा ही संजोया सा रहता है, मन की अनंत स्मिर्तियों में

सच ही कहा तुमने अनुजमैं भी तो यहाँ यही महसूस करता हूँमीलों दूर हूँ यहाँ , पर फुर्सत के लम्हे अनंत स्मृतियों में ले जाते है.... उन यादों में आज भी कितनी ठंडक है...उन खामोश लम्हों में कितनी ही बातें है....

कई बार इंसान कुछ बोलकर भी कितना कुछ बोल जाता है और कई बार सबकुछ बोलकर भी अपनी बात नहीं कह पता है.....ये मानवीय जटिलता है... शब्द दर शब्द इंसान... परत दर परत खुलता है.... पर ख़ामोशी... बिना कहे ही कैसे सब कह जाती है.... बहरहाल खुश हूँ की कुछ लोग है अपनी जिन्दगी में ... बेगाने शहर में अपनों की तरह... जिनके साथ पल दो पल जी सकता हूँ जिन्दगीजिनके बारे में सोचना अच्छा लगता है... जिनके लिए कुछ करना अच्छा लगता है..... जाने कब तक ये साथ है... पर जो और जितना ही है... अच्छा है...

दो पल तो अपने सुनहरे यादों के संदूक में संजो ही लूँगा...

मुझे अछे लोगों की बड़ी फिक्र होती है... कितने कम बचे है वो... दुर्लभ... मृगा की कस्तुरी की तरहनाग की मणि की तरह... कदम्ब के फूल की तरह... और अवसरवादी दुनिया मुह फाड़े खड़ी है...इनको निगल जाने के लिए.... इनके वजूद को मिटा डालने के लिए...

मुझे वाकई इनकी फिक्र है.... ये एक बेहतर जिन्दगी के सुपात्र है... लेकिन अफ़सोस इनके हिस्से वो कम ही आती है.... काशकाशमैं कुछ कर पता .... मुझे कुछ करना होगा...

मुझे इस धरती को बचाए रखने के लिए कुछ करना चाहिए....

इस धरती का वजूद इन्ही अछे लोगों से तो कायम है......

उफ्फ्फ ....... कितने अच्छे है ये लोग

मिलकर जीन्दगी की हर साध पुरी हो जाती है मानो....

एक प्राण करना होगा हमें चाहे हम अछे लोगों का भला कर पायें....

पर कभी हमारे हांथों उनका बुरा नहीं होना चाहिए.....

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