Saturday, April 24, 2010

अपनी जासूसी भी करिए

मेरे ऑफिस में हमारे एक  बॉस थे.अक्सर मौका पाकर वो एम्प्लोयी को काबिन में बुलाते और पूछते मेरे ऑफिस से जाने के बाद कौन क्या करता है? कौन क्या कहता है? मेरी बुराई कौन करता है? वगैरह ... वगैरह.
मेरे को भी दो बार बुला कर पूछा.इतनी खुंदक आयी की पूछो मत. मन मर कर रह गया . हर बार यही कहा की सर इन बातों से मेरा कोई सरोकार नहीं.... और वैसे भी आपकी बुराई  यहाँ कोई नहीं करता... जबकी सच इसके उलट था. ऑफिस में दबी जबान से मौका पाकर लोग थोडा बुरा भला बोल लेते थे.
मेरा मन इस ऑफिस से उब चूका था और खासकर इस बॉस से ... जो एक इंसान तो कतई नहीं था...
हालांकी उसने मुझे कभी भला बुरा नहीं कहा पर उसकी हरकतों की वजह से मुझे उसके शकल से भी नफरत हो गयी थी. म सोचता की कभी कभी इंसानों की तरह बर्ताव कर लेने से भला उसका क्या बिगड़ जायेगा?
खैर मेरा एक नए ऑफिस से बुलावा आ गया , जहाँ पिछले हफ्ते मैंने interview दिया था,
बहरहाल मैं खुश था.. पिछले साथियों से बिछड़ने का गम भी था... पर कौन सी चीज़ अब तक जिन्दगी में टिकी थी की इनके साथ के न टिकने का गम होता....
खुसी ज्यादा थी की इस ऑफिस को छोड़ रहा हूँ.
आगले दिन ऑफिस आते ही बॉस सबसे उलझते दिखे....
 लोग भी चुपचाप अपना काम करते दिखे...
मैंने कहा - सर आप हमेशा पूछते थे की कौन आपकी बुराई करता है?
और आपने तकरीबन सब से बरी बरी से पूछ भी लिया .. पर आपको तसल्ली नहीं हुई.
 होती भी कैसे आखिर . सर.
मैं  बताऊ? सर यहाँ कौन  है ,जो आपकी बुराई नहीं करता है.
सबके मन का बोझ यहाँ आपकी बुराई करके ही उतरता है .
लोगों की जासूसी करने की बजे अपनी जासूसी भी कर कर देखिये.
जनाब केबिन में चले गए... मुझे बुलाया और कहा ...
अपना रेसिग्न लैटर दे दो.
मुझे तो देना ही था...
ऑफिस वालों की आँखों में दिखी चमक से मेरे मनन का बोझ हल्का हो गया.
यार दोस्त बताते है बॉस सुधर गया है.


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